हितेश घर के अंदर दाखिल हुआ ही था तो देखा घर का माहौल बड़ा बोझिल सा हो रखा था। मां बाबूजी चुपचाप एक तरफ सोफे पर बैठे हुए थे। ना कोई टीवी चल रहा था और ना ही नोनू के साथ खेला जा रहा था। रोज तो इस समय माहौल बिलकुल अलग सा होता था।
“क्या बात है बाबू जी? आज इतनी शांति कैसे? ना आप टीवी देख रहे हो और ना ही नोनू नजर आ रहा है”
” हमें क्या पूछ रहा है? अपनी पत्नी से जाकर पूछो” बाबूजी ने दो टूक जवाब दे दिया।
हितेश को समझते देर न लगी कि कोई ना कोई बात जरूर हुई है। पर फिर भी शांत रहते हुए उसने पूछ ही लिया,
” आखिर हुआ क्या है? आप लोग नहीं बताओगे तो कौन बताएगा?”
” आजकल बहू की जुबान ज्यादा चलने लगी है। कोई लिहाज ही नहीं रहा कि बड़ों से किस तरह से बात की जाती है”
” मैं समझा नहीं माँ, कहना क्या चाहती हो”
” आज तो बहू तेरे बाबूजी के सामने हो गई। सारे संस्कार बेच खाए। हमें तो बिल्कुल अच्छा नहीं लगा ये सब” मां ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।
“अरे आप शांत रहो, मैं जाकर बात करता हूं। तारा ऐसे तो कभी आप लोगों से बोलती नहीं”
” तो क्या हम झूठ बोल रहे हैं? अपनी पत्नी पर भरोसा है, पर अपने मां-बाप पर नहीं। ऐसा ही है तो कह दो, हम हमारे बड़े बेटे बहू के पास चले जाएंगे”
” बाबूजी आप शांत रहिए। मैं जा कर देखता हूं कि क्या बात है” हितेश ने वहाँ से उठने में ही भलाई समझी। उठ कर सीधे अपने कमरे में गया जहाँ नोनू चुपचाप बैठा हुआ अपने खिलौनों से खेल रहा था और तारा कपड़ों को तह लगा रही थी।
” तारा क्या बात है? माँ बाबू जी क्या कह रहे हैं?”
“उन्होंने बता ही दिया होगा ना कि आज मैंने उनसे जुबान लड़ाई है”
” हां, बता दिया, पर मैं जानना चाहता हूं कि ऐसा क्यों? तुम तो कभी मां बाबूजी से ऊंची आवाज में बात भी नहीं करती थी”
“कारण नहीं बताया उन्होंने”
” बताया होता तो मैं क्या तुम से पूछता?”
” क्या करूं? बहू पर एक माँ हावी जो हो गई थी, इसलिए”
“मतलब?? “
” तुम्हें पता है ना बाबू जी की आदत है हर बात में गाली गलौज करने की। आजकल उन्होंने नया खेल ईजाद किया है। अब नोनू से बुलवाते हैं। माँ जी भी कुछ कहती नहीं। उल्टा नोनू के मुंह से सुनकर जोर-जोर से हंसते हैं। इस बच्चे को थोड़ी ना पता है कि वह क्या बोल रहा है? बहू थी इसलिए बर्दाश्त कर लिया, लेकिन अब मां हूं, ये बर्दाश्त नहीं करूंगी।
कई बार मां को कह चुकी हूं कि बाबूजी को समझाए, पर नहीं। आज सुबह नोनू को दूध पीने के लिए कहा तो उसने दूध पिया नहीं। जब मैं उसे डांटने लगी तो उसने मुझे मां बहन की गाली दी। यह सुनकर उसे समझाने के बजाय मां और बाबू जी जोर जोर से हंसने लगे।
और मैंने नोनू के गाल पर थप्पड़ खींच कर लगा दिया। बस इसी बात को लेकर मुझे सुनाने लगे। जो मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं आज सामने बोल गई। उनके लिए तो यह सिर्फ एक खेल है पर मेरे बच्चे के लिए….। अब बस, ना मैं गाली सुनूँगी और ना ही आने वाली पीढ़ी में किसी और को सुनने दूंगी”
कहते कहते तारा चुप हो गई। गलती तारा की भी नहीं थी इसलिए हितेश तारा को कुछ कह नहीं पाया। बाहर आया तो देखा माँ बाबूजी वहीं बैठे हुए थे,
” बाबूजी गलती किसकी थी”
” बस, आ गया अपनी पत्नी के बहकावे में। अब क्या हमारे पोते के साथ खेले भी नहीं”
” बाबूजी खेलना अलग चीज होती है और गलत सिखाना अलग चीज है। अभी आप को उसके मुंह से गालियां सुन कर मजा आ रहा है लेकिन जब बड़ा हो करके ये आपको गालियां देगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा”
” बेटा तुझे शर्म नहीं आती। क्या इसी दिन के लिए तुम्हें पैदा किया था कि तुम अपने बाबूजी के सामने हो जाओ”
” मां एक बार सोच कर देखो। मैं आपको मां बहन की गाली दूं तो आपको कैसा लगेगा? बस वैसा ही महसूस तारा को हुआ था। एक औरत सब बर्दाश्त करती है, पर मां नहीं। और बात जब उसके बच्चों की हो तब तो बिल्कुल नहीं।
मैं इस चीज में आप लोगों का साथ बिल्कुल नहीं दूंगा। कल को वह बाहर जाकर इस तरह की हरकतें करेगा तो बदनामी सिर्फ तारा की नहीं होगी, हमारे पूरे परिवार की होगी। और उस परिवार में आप लोग भी शामिल हो। तब आपको क्या बहुत खुशी होगी जब हमारे परिवार के संस्कारों को दूसरों के सामने बखाना जाएगा”
कहकर हितेश अपने कमरे में चला गया और मां बाबूजी वहीं बैठे सोचते रह गए।
दोस्तों, ये कई घरों में देखा गया है जब छोटे बच्चे अपने मुंह से तुतलाते हुए अपशब्द बोलते हैं, तो बड़े उन्हें रोकने की जगह काफी एंजॉय कर रहे होते हैं। पर यह गलत है क्योंकि हम गलत को ही तो बढ़ावा दे रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि वो लोग क्या बोल रहे हैं और ये समझाना घर के बड़ों का फर्ज़ होता है।