चीन की बनी हुई कीलों ने हाल के दिनों में पूरे भारत की काली और मरियल कीलों को रिप्लेस कर दिया है❗️
इन कीलों की खासियत ये है कि इन्हें अगर दीवार में ठोका जाये तो ये हमारी किलों के मुकाबले टेढ़ी नहीं होती हैं❗️
पहले हम अपने देश में बनी कीलों को अपने घरों की दीवार में ठोक पाते थे मगर कुछ सालों से जो कीलें अपने यहां बनने लगी थीं वे दीवार में सही सलामत तभी जा पाती थीं, जब तक ड्रिलिंग मशीन के सहारे उसे अंदर डाला जाये….
आलम यह था कि अगर आपको घर में चार कीलें लगवानी है तो ड्रिलिंग मशीन किराये पर मंगवायें,,,
मगर अब इन कीलों ने फिर से हमारा काम आसान कर दिया है, डेढ़ से दो रुपये की एक आती हैं और इन्हें आप हथौड़े से सीधे ठोक सकते हैं…
कीलों पर इतना लंबा #लिखने का एक ही मकसद है कि हम अब अपनी जरूरत के हिसाब से कीलें भी नहीं बना पा रहे हैं… इसी तरह सखुआ से बने पत्तलों को चाइनीज थर्मोकोल की पत्तलों ने लगभग रिप्लेस कर दिया है,
भारत की बनी इमरजेंसी लाइट जहां सात-आठ सौ रुपये से कम की बिकती नहीं वहीं चाइनीज इमरजेंसी लाइट महज सौ रुपये में मिल रही है,
दीपावली की रोशनी वाली झालरें, होली की पिचकारी और 15 अगस्त का झंडा सब चीन से आ रहा है….
तो भाई हम बना क्या रहे हैं, हम आर्थिक महाशक्ति कैसे बन रहे हैं❓
ये छोटे-छोटे सवाल नहीं हैं, भारतीय औद्योगिक विकास पर सवालिया निशान हैं,,,
ये देश के बड़े उद्योगपति कर क्या रहे हैं, बस जमीन बढा रहे हैं कि कुछ जरूरी चीजें बना भी रहे हैं❓
अगर हमको आर्थिक रूप से मजबूत बनना है तो इन छोटी छोटी चीजों को अपने देश मे ही बनाना होगा,
लघु_उद्योगों को बढ़ावा देना होगा, सरकार को नीतियाँ बनानी होगी, नोकरियों के अलावा भी कमाई के साधन हो सकते है, ये लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी❗️
चीन आज इसी वज़ह से अतिविकसित देशों की श्रेणी में है, क्योंकि वहाँ,,
घर घर मे कील, सुई से लेकर बड़ी चीजों के उद्योग है, एक 10 साल का बच्चा घड़ियाँ बनाता हैं❗️
मजबूरन, बहिष्कार के बाद भी हम चीन से आयात करने को मजबूर है❗