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गरीबी जब दरवाजा खटखटाती है तो प्यार खिड़की से बाहर निकल जाता है’

कल एक सज्जन कह रहे थे कि लड़कियां अवसरवादी होती हैं.. उनके लिए प्यार मायने नही रखता, पैसा ही सब कुछ है..

लड़की सफल लड़के को और सफल करियर को न खोजे तो क्या करे?
वो आपके साथ सारा जीवन धक्के खाये?” होने वाले बच्चे भूख और जरूरी चीनों के लिए तरसे?
चक्की पीसने वाले के साथ जीवन गुजार ले??”

वो ऐसा रिस्क क्यों ले कि तुम बाद में राजा हो जाओगे?? “

धर्मबीर फ़िल्म का एक जबरदस्त डायलाग है कि ‘ गरीबी जब दरवाजा खटखटाती है तो प्यार खिड़की से बाहर निकल जाता है’

जब उसको अगला पूरा जीवन किसी ऐसे लड़के के साथ गुजरना है जिसको वो ज्यादा जानती नही, तो कम से कम सफल तो रहे। जीवन की जरूरी चीजों के लिए तरसना तो न रहे…

जब अरेंज मैरिज होती है तो घर रिश्तेदारी के समझदार लोग जाते हैं यह देखने के कि लड़का कैसा है, आगे की संभावना क्या है.. नौकरी नही है तो क्या दस पंद्रह बीघा खेत है जिससे कम से कम पेट तो भर सके..”
समझदार लोग विवाह देखने जाते थे क्योंकि बच्चे इतना समझदार नही होते कि वो ऐसी चीजें सोच सकें।

लड़कीं का बाप अपने दामाद वो सब खोजता है जो उसने अपने पचास साल में अचीव किया होता है।
लव मैरिज होती है तो भी माता पिता सम्भावना देखकर ही अपनी बेटी के साथ खड़े होते हैं..
क्योंकि बेटी को अगर मोटर मैकेनिक और चक्की पीसने वाले से ही शादी करनी होती है उसके पास एक ही रास्ता है कि घर से भाग ले।

फ़िल्म में श्रद्धा ने सफलता की संभावना पर ही लेटर लिखा था कि तुम जो भी रहोगे, मंजूर है.. सफल हो गए तक ठीक वरना
ऐसे लेटर की क्या बिसात??
रोज फटते रहते हैं जिनमें जीवन भर साथ रहने की कसमें लिखी रहती हैं..

धड़कन फ़िल्म वाले सुनील शेट्टी से कोई अपनी लड़की का विवाह नही करेगा।
वैसे भी भूखे नंगों को प्यार भी बहुत होता है..

12th फेल मनोज शर्मा अगर गांव से बाहर न निकलते, तो आप उनका जीवन सोच सकते हैं…

हमारे यहां रीति है कि अपनी गाय भी खूंटे पर से हटाते है तो सामने वाले से पूछते हैं कि बरसीम या चरी बोए हो?
दोनों टाइम गैया का पेट भर लोगे???

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