इसे एक किस्से से समझते है
एक व्यक्ति दूर से देख रहा था की शर्मा जी एक डब्बा गुप्ता जी के यहाँ लेकर गए जिसमे की कुछ खाने का सामान था जब सहरमा जी ने गुप्ता जी को डब्बा दिया तो गुप्ता जी ने अंदर जाकर डब्बा खोला जिसमे लड्डू थे उन्होंने लड्डू निकाल लिए परन्तु खाली डब्बा तो देते नहीं है उन्होंने उसमे कलाकंद रखकर शर्मा जी को वापस दे दिया शर्मा जी घर वापस आ गए। अब दूर से देखने वाले व्यक्ति को लगा की गुप्ता जी ने कुछ नहीं लिए डब्बा जैसा गया था वैसा ही वापस आ गया परन्तु उसे नहीं पता की अंदर का खाना बदल गया है उसी प्रकार से जब हम खाने का भोग लगाते है तो वही भोजन प्रसाद बन जाता है प्रभु की कृपा उसमे सम्मिलित हो जाती है किन्तु अज्ञानवश हमें लगता है की जैसा भोजन हमने प्रभु को दिया वैसा ही वापस मिल गया परन्तु ऐसा नहीं वह प्रसाद बनकर प्रभु की कृपा के साथ हमें मिलता है
भगवान एक आध्यात्मिक शक्ति हैं, और उनका शरीर हमारे शरीर जैसा नहीं है वे तो अजर तथा अमर है। वे भौतिक दुनिया से परे रहते हैं, और उन्हें भोजन या किसी अन्य भौतिक वस्तु की आवश्यकता नहीं होती है।
तो फिर, हम भगवान को भोग क्यों लगाते हैं? इसके कई कारण हैं:
भक्ति का एक रूप: भोग लगाना एक प्रकार की भक्ति है। यह हमारे भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रदर्शन है। जब हम भगवान को भोग लगाते हैं, तो हम उन्हें यह बता रहे होते हैं कि हम उनकी पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद चाहते हैं।
कृतज्ञता का प्रदर्शन: भोग लगाना एक प्रकार की कृतज्ञता का प्रदर्शन भी है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हम जो कुछ भी खाते हैं, वह प्रकृति की देन है। जब हम भगवान को भोग लगाते हैं, तो हम उन्हें यह बता रहे होते हैं कि हम उनके द्वारा दी गई समृद्धि और आशीर्वाद के लिए आभारी हैं।
शुद्धिकरण: भोग लगाने को एक प्रकार का शुद्धिकरण भी माना जाता है। जब हम भगवान को भोग लगाते हैं, तो हम भोजन को पवित्र कर रहे होते हैं। यह भोजन को हमारे लिए और अधिक पौष्टिक और लाभकारी बनाता है।
भगवान को भोग लगाने के कुछ विशिष्ट लाभ निम्नलिखित हैं:
यह हमारे मन को शांत और केंद्रित करता है।
यह हमारे आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है।
यह हमें भगवान के साथ एक संबंध बनाने में मदद करता है।