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एक बेरोजगार स्टूडेंट की कहानी

सरकारी नौकरी की तैयारी में तीस पार कर चुके अविवाहित युवा की बेकारी, बेकदरी और बर्बादी की कहानी मुझसे सुनिए। मैं यूपी के गोरखपुर मंडल के एक कस्बे से हूं, उम्र 32 साल। बचपन से ही सीधो सादा सरल इंसान रहा। घर में भाई और मां बाप हैं। मैं सबसे बड़ा हूं। जाति का बनिया हूं मेरे दादा की मिठाई की दुकान मेरे इलाके में मशहूर थी। लेकिन जब पापा और चाचा के बीच बंटवारा हुआ तो यह दुकान बंद हो गई। मेरे पापा अब जूते चप्पल की दुकान करते हैं जिससे हमारा परिवार चलता है। बचपन मेरा संघर्षों में बीता। स्कूल से लौटता तो दुकान संभालता था।

मैंने साल 2007 में मैट्रिक पास की और आगे की पढ़ाई के लिए गोरखपुर चला गया। फिर वहीं ग्रेजुएशन करने के साथ साथ सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गया और जिंदगी इसी में खपा दी। मैं कभी गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रेंड करने में नहीं रहा। करीब 70 सरकारी नौकरियों की परीक्षा दे चुका हूं लेकिन कुछ नंबरों से हमेशा पीछे रह गया। एक परीक्षा देता फिर यह लालच होता कि अगली परीक्षा दे लेते हैं, फिर उसमें फेल होता तो सोचता कि अगली भर्ती देख लेता हूं। बस इसी मकड़जाल में फंसा रह गया। इस दौरान घर का काफी पैसा और मेरे कई साल गुजर गए या यूं कहिए कि बर्बाद हो गए। और अंत में आज अपने घर पर ही बोझ सा बन गया हूं।

घर में जवान बेटी हो या बेरोजगार लड़का, परिवार और समाज उसे भार ही समझता है। उनको हेय दृष्टि से देखा जाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा सलूक हो रहा है। मेरा समय चला गया, जवानी चली गई लेकिन जीवन का परिणाम अच्छा नहीं आया। समझ नहीं आता कि कमियां मेरे ही अंदर हैं कि किसके अंदर हैं। सरकार और आयोग समय से एग्जाम नहीं लेता और न ही रिजल्ट देता है। और मुझे इस मकड़जाल में फंसाया किसने था, मेरे ही परिवार ने। मैं आगे पढ़ाई के लिए गोरखपुर नहीं जाना चाहता था लेकिन मुझे घरवालों ने भेजा। मैंने कहा कि मैं बिजनेस करना चाहता हूं तो घरवालों ने कहा कि तू कायर है, पढ़ाई और तैयारी से डरता है। तेरे में दम नहीं है। जब मैं बार-बार असफल होता तो यही घरवाले कहते कि हम तो पहले से जानते थे कि तुम नहीं निकाल पाओगे, निकम्मा हो।

जब किसी को सफलता समय से मिल जाती है तो सारी अच्छाइयां गिनाई जाती हैं और जब कोई असफल हो जाता है तो सारी बुराइयां सामने निकल के आ जाती हैं। अब मैं घर में ताने सुनता हूं। मेरी मां मुझसे अनबन करती है। मुझसे दस साल छोटा भाई मुझे ऐसे डांटता है जैसे मैं उसके सामने पैदा हुआ हूं। बेरोजगार होने का ऐसा दंश झेल रहा हूं। मां बीमार रहती है और उनके हाथ में दर्द होता रहता है तो सबके लिए रोटियां मैं ही बनाता हूं। दोनों टाइम बर्तन भी मांजता हूं। भाई को सहयोग के लिए बोलता हूं तो कहता है कि खूब पैसा गंवा कर घर बैठा है तो काम तो करना पड़ेगा। शाम को मैं 25 रोटियां बनाता हूं। मैं एक मर्द हूं लेकिन अब काम औरतों वाला करना पड़ता है।

घर का कोई काम बिगड़ जाए तो सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर मढ़ दी जाती है। मेरी कोई कद्र नहीं। छोटे भाई को संभालने के लिए पापा ने दुकान दे दिया है और मुझे वो ताना मारता है कि तेरे अंदर दम नहीं है। ये मां बाप और भाई जो मुझे ताने देते हैं, वो ये याद नहीं करते कि एक समय था जब दादा की मिठाई की दुकान थी तब मैं तीस किलोमीटर दूर से गैस सिलेंडर साइकिल पर बांधकर लाता था। पंद्रह किलो वाला डालडा का डिब्बा उठाकर लाता था। 25 लीटर का दूध का कंटेनर उठा लेता था। कुल्हाड़ी से लकड़ी का बोटा चीरता था। अपने वक्त में मैं बहुत काम किया हूं लेकिन वो सब मेरे मां बाप ने भुला दिया।और भाई जिसको मैंने अपनी कभी अपनी गोद में खिलाया है, वो ऐसा बर्ताव कर रहा है।

मुझे लगता था कि मेरे मां बाप और भाई अच्छे हैं लेकिन अब पता चल रहा है कि जिस इंसान के पास पैसा नहीं है, उस इंसान की कोई कद्र नहीं है। सबसे पहले वह घर में ही बदनाम होता है। ऐसा नहीं है कि मैं अपने घर की शिकायत कर रहा हूं। मैं सर्वगुणसंपन्न भी नहीं हूं। हर इंसान में कमियां होती हैं।

जो लोग अभी 22 साल के हैं, वो सचेत हो जाएं। अगर आपके पास पैसा नहीं है तो आपके घर का कोई सदस्य काम नहीं आएगा। भले ही वो आपका भाई ही क्यों न हो। अगर समय और जवानी खपाने के बाद भी आपके पास पैसा नहीं रहा तो आप ये रिश्ते नाते भी खो देंगे। कोई आपको अपना नहीं कहेगा। मैं अपनी कहानी के जरिए यह बताने की कोशिश भी कर रहा हूं कि कैसे एक बेरोजगार पुरुष का परिवार में शोषण होता है। मैं कभी-कभी जीवन के बारे सोचकर बहुत हताश हो जाता हूं। जीवन की गाड़ी कैसे आगे बढ़ेगी……………

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