चलिए मां जी ……गर्मागर्म खाना खा लीजिए …
सुधा ने सुषमा जी से जैसे शब्द कहे …
सुषमा जी चौकी- हे……आज बिना पूछे खाना बना भी लिया इसने तो घर मे मेरी अहमियत ही खत्म कर दी टेबल पर बैठी तो मनपसंद खाना था मगर पूछकर बनानेवाली बात कुछ ओर होती ……
कुछ अनमने मन से पति से बोली-आपकी बहुरानी ने तो मेरी अहमियत खत्म कर दी बिना पूछे बनाने लगी अब घरपर हुक्म भी चलाएगी…
चुप करो …..पांच सालो से लगातार वो तुमसे पूछकर हर काम करती है और तुम हर छोटी बडी बातों पर डांटती रहती हो कुछ काम खुद से भी कर सकती हो अब तक नही सीखी कब से सीखा रही हूं …
और आज बहु ने बिना पूछे बना लिया तो परेशान कयो हो रही हो ……सोने दो मुझे…..
कहकर करवट बदलकर सो गए वहीं सुषमा जी अबभी वहीं सोच रही थी कि बहु उसका घरसे अस्तित्व मिटा रही है …..ऐसे सोचते सोचते झपकी लगी तो वो भी सो गई… जब आँखें खुली तबतक बेटा मोहन आँफिस से वापस लौट चुका था दुखी मन लिए बाहर टेबल पर आकर बैठी चाय का वक्त जो हो रहा था अभी कहने की सोच ही रही थी की तभी सुधा चाय लेकर आ गई और साथ ही बैंगन और गोभी के पकौड़े भी लेकर आई …..
बैंगन और गोभी के पकौड़े सुषमा जी के फेवरेट है मगर फिर वही पूछकर बनते तो स्वाद और बढता मगर बिना पूछे ……
लगता है मेरे राज करने के दिन लद गए… कितने अरमानों से बहु को सबकुछ सीखाया और वहीं बहु आज उसे दरकिनार करने पर तुली है …
आँखों मे आँसु लिए मन मोस रही थी की सुधा एक गिफ्ट नुमा पैकेट लेकर आई और सुषमा जी को देकर पैर छूते हुए बोली- आशिर्वाद दीजिए मम्मी जी…..
हूं…. आशिर्वाद मेरी अहमियत खत्म करके खुदका सिक्का जमाने मे लगी है और दिखावे को आशिर्वाद….मन मे कुढते हुए सुषमा जी सोच रही थी
ये किसलिए…आज ना तो मदर्स डे ना मेरा जन्मदिन और ना ही कोई दिन त्यौहार ..सुषमा जी गुस्से मे बोली..
सुधा-मम्मी जी …ये तो एक गुरु के श्री चरणों मे एक शिष्य का प्यार और सम्मान है …..
मम्मी जी पिछले पांच सालो से आपके छत्रछाया मे घर बाहर के खानेपीने और रहनसहन के गुरुमंत्र सीख रही हूं कोशिश करती रही की सबकुछ सीख लूं मगर कुछ ना कुछ भूल ही जाती थी और आपसे पूछने चली आती थी ये बोल रहे थे एकदिन मां की पसंद नापसंद का खाना बनाओ बिना पूछे उनके सभी काम करो बिल्कुल एक परीक्षा की भांति ..और फिर मां यानी अपनी गुरु से परिणाम मतलब रिजल्ट लो ..देखो तुम उनकी परीक्षा मे पास होती हो या फेल..
वैसे मे आपको बता दूं ….आपके दिए निर्देश मेरे जीवन मे एक वो कुंजी का काम करते है जो किसी भी ताले को खोल सकती है तो मे आपसे पूछे बिना कोई काम नही करना चाहती …
सुषमा जी अबतक सब समझ चुकी थी आँसू पोछते बोली-सुधा ….तुम बहु नही बेटी हो मेरी …
और बेटियां हमेशा मां की परछाई होती है और परछाई भला कैसे फेल हो सकती है 100% पूरी तरह पास मेरी बच्ची …और मेरी और से हुई भूलचूक गलतियों को भी माफ करना कहकर सुधा के गले लग गई वहीं दूर खडे मोहन और उसके पिताजी ये सब देखकर मुसकरा रहे थे……!!