- शादी के समय क्या आपको मेरा इतना बड़ा कुनबा नजर नहीं आया था?
संडे का दिन था। अभी लंच करके सुमन जी अपने कमरे में जाकर लेटी ही थी कि डोर बेल बज गई। बहु निधि को आवाज लगाई दरवाजा खोलने के लिए पर निधि शायद छत पर सूखे कपड़े लेने गई हुई थी। दो-तीन बार डोर बेल बजी। मन ही मन कसमसाती हुई निकल कर बाहर आई और दरवाजा खोला। देखा तो सामने निधि के बुआ जी फूफा जी थे। मन न होते हुए भी सुमन जी ने उन लोगों को नमस्कार किया और अंदर ले आई।
अंदर हॉल तक आते आते मन में कई बातें घूम चुकी थीं। इन लोगों को भी संडे के दिन चैन नहीं है। बस मुँह उठाया और चले आए। अच्छी बहू पल्ले पड़ी है मेरे। आए दिन कोई ना कोई मायके से आता ही रहता है।
” आज इधर कैसे आना हुआ आप लोगों का?” सुमन जी ने सवाल किया।
” पोते का मुंडन है तो सोचा निधि को न्योता भी दे आएंगे और उससे मिल भी लेंगे। बहुत दिन हो गए उसे देखें भी”
बुआ जी ने जवाब दिया। इतने में निधि भी नीचे आ गई और बुआ जी फूफा जी को देख कर बड़ी खुश हुई। निधि को देखकर सुमन जी ने कहा,
” बहु अपने बुआ जी फूफा जी को चाय नाश्ता कराओ। मैं अंदर कमरे में आराम करने जा रही हूं। मेरा सिर दर्द हो रहा है”
कहकर सुमन जी अपने कमरे में चली गई। उनका ये रूखा व्यवहार देखकर बुआ जी फूफा जी एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। तब निधि ने बात को संभाला,
“वो आज दरअसल मम्मी जी की तबीयत खराब है ना इसलिए। आप लोग बैठो ना, मैं अभी आप लोगों के लिए चाय नाश्ता लेकर आती हूं”
” अरे नहीं बेटा, तू बैठ हमारे पास। हम तो बस जा रहे हैं। तुझे देखने की इच्छा थी इसलिए चले आए। और हां, यह तेरे भतीजे के मुंडन का प्रोग्राम का कार्ड है जरूर से आना। और हां अपने पूरे परिवार को भी साथ लेकर आना। आज समधन जी की तबीयत खराब है तुम ही उनसे बोल देना”
” जी जरुर आऊँगी। पर ऐसे कैसे? चाय तो लेनी ही पड़ेगी”
” अरे मेरी बच्ची, चाय नाश्ता छोड़। तू तो बस बात ही कर ले हमसे”
निधि के बुआ जी फूफा जी मुश्किल से दस से पंद्रह मिनट वहां रुके और फिर रवाना हो गए। निधि को सुमन जी का व्यवहार बिल्कुल पसंद नहीं आया। अक्सर यही होता था। जब भी निधि के मायके से कोई आता था, सुमन जी सिर दर्द का बहाना कर अपने कमरे में जाकर बैठ जाती थी। और फिर उनके जाते ही कमरे के बाहर निकल आती थी। उसके बाद शुरू होता शिकायतों का सिलसिला, जो दो-तीन दिन तक चलता ही रहता।
” हमारे तो मायके से हर रोज कोई उठकर नहीं आता था। तुम्हारे तो मायके से जब देखो कोई ना कोई चला आता है। बेटी के ससुराल में आने से पहले सोचना तो चाहिए। ऊपर से आए दिन पता नहीं कितने प्रोग्राम होते हैं तुम्हारे मायके में। इतना बड़ा कुनबा (परिवार) है, जरूरी है क्या सब से रिश्ता निभाना। बेचारा मेरा बेटा तो ससुरालियों के चक्कर लगा लगा कर ही बर्बाद हो जाएगा”
शाम को जब निधि का पति अनुज ऑफिस से आया तो निधि ने उसे बुआ जी का कार्ड देते हुए कहा,
” बुआ जी के पोते का मुंडन है। इसी के उपलक्ष्य में प्रोग्राम रखा है। हमारे भी पूरे परिवार को न्योता दिया गया है”
” अच्छा! पर मेरी तो जरूरी मीटिंग है। एक काम करना तुम, मम्मी और पापा चले जाना”
” हम तो कहीं नहीं जाएंगे. पहले ही बता देती हूँ” सुमन जी ने बीच में ही कहा।
” क्यों? क्या हो गया मम्मी? आप क्यों नहीं जाओगे? बुआ जी फूफा जी खुद घर पर आकर न्योता देकर गए हैं। आपको तो जाना चाहिए”
” मुझे थोड़ी ना देकर गए है। बस, अपनी भतीजे के हाथ में देकर चले गए”
” पर मम्मी जी, आप ही तो सिर दर्द का कहकर कमरे में चली गई थी”
” अरे तो घर में तो थी। कही घर के बाहर थोड़ी ना गई थी। इतना बड़ा कुनबा है लेकिन जरा सी भी समझ नहीं है कि बेटी के ससुराल न्योता देते हैं तो न्योता उसकी सास को दिया जाता है। अपनी बेटी को बुलाने के लिए उसके सास ससुर से पूछा जाता है। इतना बड़ा कुनबा लेकर बैठे हैं पर बिल्कुल भी समझ नहीं है। हम क्या रोड पर पड़े हैं जो ऐसे उठ कर चल देंगे”
निधि ने अनुज की तरफ देखा तो अनुज ने बात संभालते हुए कहा,
“कोई बात नहीं मम्मी। आप नहीं जाना चाहती हो तो मैं अपनी मीटिंग पोस्टपोन कर लेता हूं और निधि के साथ मै ही चला जाऊंगा”
” हां तू तेरा काम धंधा छोड़ दे और अपने ससुरालियों के चक्कर लगाते रहे। किस्मत ही खराब है मेरी जो ऐसी बहू मिली है, जिस का कुनबा भी ऐसा है जिसे जिला घोषित कर देना चाहिए। बस काम-धाम छोड़ कर के इनके साथ चक्कर लगाते रहो। आज मामा के घर प्रोग्राम है, कल फूफा जी के घर प्रोग्राम, कभी मौसी तो कभी ताई, कभी दीदी तो कभी भाई। ऊपर से खर्चा नहीं होता है क्या”
सुमन जी सिर पर हाथ रख शिकायत करते हुए बोली। यह बात निधि को बिल्कुल पसंद नहीं आई और उसने जवाब देना ही ठीक समझा,
” मम्मी जी यह क्या बार-बार आपने कुनबा कुनबा लगा रखा है। शादी के समय क्या आपको मेरा इतना बड़ा कुनबा नजर नहीं आया था। तब तो बड़ा प्यार आ रहा था आपको मेरे कुनबे पर। तब तो आपको अपनी किस्मत पर बड़ा नाज हो रहा था जब इन लोगों की तरफ से भर भर के गिफ्ट आ रहे थे। अब क्या हो गया? लेते हुए तो बड़ा अच्छा लगता है, देते हुए क्या समस्या हो जाती है आपको। जबकि हम जितना उन्हें देते हैं उससे ज्यादा तो वो लोग हमें लौटा देते हैं। आपको नहीं जाना है तो मत जाइए, मैं अकेली ही चली जाऊंगी। पर कम से कम बार-बार मेरे परिवार का बखान करना बंद कीजिए”
निधि जवाब देकर अंदर कमरे में चली गई। पीछे सुमन जी मुंह फुला कर अनुज की तरफ देखने लगी। तब अनुज ने कहा,
” ये तो होना ही था मम्मी। बार-बार आप इस तरह की बातें बोलोगे तो सामने वाला कब तक सुनेगा। शिकायत भी उतनी ही करो जितनी बर्दाश्त हो सके”
कहकर अनुज भी कमरे में चला गया। सुमन जी वही अपनी शिकायतों के पुलिंदे के साथ अकेली बैठी रह गई।