“आवाज ऊंची हो तो कुछ लोग सुनते हैं, अगर बात ऊंची हो तो बहुत सारे लोग सुनते हैं” यह कहावत हमें यह सिखाती है कि सिर्फ आवाज ऊंची करने से हमारी बात नहीं सुनी जाती है। हमें अपनी बातों का महत्व समझना चाहिए और उनका सही तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। अगर हमारी बातों में सच्चाई, तर्क और भावनाएं हों, तो लोग उन्हें सुनेंगे, चाहे हमारी आवाज कितनी भी धीमी हो। तेज आवाज सिर्फ अपने को ताकतवर दिखाने का जरिया हो सकती है लेकिन सही बात धीमी आवाज में भी असरदार होती है और लोग सुनते भी है।
बात ऐसे ना कहे की वह शोर लगे बल्कि ऐसे कहे की सुनाने वाले की इच्छा हो आपकी कही बात सुनने की आजकल ये चलन सा हो गया है की इतना तेज बोलो की सामने वाला तुम्हारे आगे बोल ही ना पाए और चिल्ला चिल्लाकर अपने गलत को भी सही साबित करने की जैसे होड़ सी लग गयी है।
आवाज ऊंची करने से लोग सिर्फ हमारे शब्दों को सुनते हैं, लेकिन अगर हम अपनी बातों का महत्व समझते हैं और उनका सही तरीके से प्रस्तुत करते हैं, तो लोग हमारी बातों को समझते हैं और उन पर विचार करते हैं। इससे हमारी बातों का प्रभाव अधिक होता है और लोग हमें अधिक सुनते हैं।
इस कहावत का एक और अर्थ यह भी हो सकता है कि सिर्फ अपनी बातों को कह देने से कुछ नहीं होता है। हमें अपनी बातों को सही लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रयास करने चाहिए। इसके लिए हमें अपनी बातों को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए और लोगों को सुनने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
इस कहावत से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए और उन्हें प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने के लिए प्रयास करना चाहिए। इससे हमारी बातों का प्रभाव अधिक होगा और लोग हमें अधिक सुनेंगे।