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घरेलू काम के आश्चर्य जनक फायदे : अद्भुत व अविश्वसनीय

एक दिन मैं घर के बाहर बड़ी ही तन्मयता से अपनी गाड़ियां धो रही थी।रास्ते से साईकल पर जाता हुआ एक माली रुका और मुझसे पूछा, ” कुछ पौधे वगैरह चाहिये? “

मैंने कहा,” चाहिए तो “
उसने कहा,”अपनी मैडम को बुला दो।उनसे ही बात करूंगा “

मैंने अंदर जाकर कपड़े बदले और बाहर आकर कहा,” मैं ही मैडम हूँ, पौधे दिखाओ।”

वो बेचारा शर्म से पानी – पानी हो गया और माफी मांगने लगा।

कसूर उसका नहीं था।अक्सर बड़े घरों व बड़ी गाड़ियों में चलने वालों के घर नौकरों की पलटनें होती हैं।ऐसे में कोई सोच भी नहीं सकता कि जिनके घर में कई गाड़ियां खड़ी हों,जिनका खुद का घर इतना बड़ा हो, वो लोग भी अपना काम खुद करते होंगे।

मुझसे अक्सर जान-पहचान वाले लोग कहते हैं कि नौकर क्यों नहीं रख लेती?

मैं पलटकर उनसे पूछती हूँ कि क्या आपको मैं लूली,लंगड़ी या अपाहिज नज़र आती हूँ?यदि नहीं!तो फिर मैं अपना काम खुद क्यों नहीं कर सकती?यदि मुझमें अपने काम खुद करने का सामर्थ्य है तो मैं वही काम नौकर से क्यों कराऊँ????

मैं कभी-कभी मैं हैरान होती हूँ कि एक कामकाजी महिला होने के बाद भी मैं अपने घर के सारे काम खुद करना पसंद करती हूँ।

दो मंज़िल के घर की सफाई,वृहद बगीचा… लेकिन घर के झाड़ू पोछे से लेकर गार्डन की सफाई,गाड़ियों को धोना,साफ करना,हर तरह का खाना बनाना,साग- सब्जी लाना,कपड़े खुद धोना ,इस्त्री करने से लेकर बर्तन धोने और गमले व बगीचे में पेड़- पौधे लगाने का काम भी मैं बड़ी ही सरलता से कर लेती हूँ।

दिन में 100-200 km गाड़ी भी चला लेती हूँ‌‌।गोल्फ खेलती हूँ,5km वॉक करती हूँ।समय मिले तो थोड़ा बहुत पढ़-लिख भी लेती हूँ …

इस कहानी को पढ़ने के बाद मैं सोचने लगा कि हमारी वो गृहणियाँ जो नौकरी भी नहीं करती, आफिस नहीं जाती,उन्हें अपने ढाई कमरों के घर साफ कराने,चार बर्तन धोने और 8 रोटी सेकने के लिए नौकर क्यों चाहिये???

जो अंग्रेज नौकरशाही का कोढ़ हमारे समाज में फैला कर चले गए ,उनके अपने देश में घरेलू नौकर रखने का कोई रिवाज़ नहीं है। वहां वे लोग अपना सारा काम खुद करते हैं लेकिन हमारे यहाँ अपने घर का काम खुद करने में शर्म आती है,क्यों???

हमारी गृहणियों को भी जिनके पति सवेरे आफिस चले जाते हैं और शाम को घर लौटते हैं,अपने 10 x 10 के कमरे साफ कराने के लिये महरी चाहिए?

मेरे अभिजात्य दोस्त लोगों में , जिनकी पत्नियाँ हर हफ्ते पार्लर जाती हैं उन्हें वज़न घटाने के लिए सलाद के पत्ते खाना मंज़ूर है!!जिम में घण्टों ट्रेड मिल पर हांफना मंज़ूर है लेकिन अपने घर में एक गिलास पानी लाने के लिए उन्हें नौकर चाहिए।

जो नौकरानियां हमारे घरों को साफ करने आती हैं उनके भी परिवार होते हैं , बच्चे होते हैं?ना उनके घरों में कोई खाना बनाने आता है और ना ही कोई कपड़े धोने तो फिर जब वो इतने घरों का काम करके अपनी तमाम पारिवारिक जिम्मेदारियां खूब अच्छे से निभा लेती हैं तो हम अपनी परिवारिक जिम्मेवारियां निभाने में क्यों थक जाते हैं?

जवाब बहुत सीधा सा है।दरअसल हमारे यहाँ काम को सिर्फ बोझ समझा जाता है। चाहे वह नौकरी में हो या निजी जिंदगी में। जिस देश में कर्मप्रधान गीता की व्यख्या इतने व्यपक स्तर पर होती है वहाँ कर्महीनता से समाज सराबोर है।हम काम में मज़ा नहीं ढूंढते, सीखने का आनंद नहीं जानते, कुशलता का फायदा नहीं उठाते!

हम अपने घर नौकरों से साफ कराते हैं!

झूठे बर्तन किसी और से धुलवाते हैं!

कपड़े धोबी से प्रेस करवाते हैं!

खाना कुक से बनवाते हैं!

बच्चे आया से पलवाते हैं!

गाड़ी ड्राइवर से धुलवाते हैं!

बगीचा माली से लगवाते हैं!

तो फिर अपने घर के लिये हम करते ही क्या हैं?

कितने शर्म की बात है कि एक दिन अगर महरी छुट्टी कर जाये तो हमारे पूरे घर में कोहराम मच जाता है।फ़ोन करके अडो़स-पड़ोस में पूछा जाता है।

जिस दिन खाना बनाने वाली ना आये तो होटल से आर्डर होता है या फिर घर में सबके लिए मैगी बनता है।

घरेलू नौकर अगर साल में एक बार छुट्टी मांगता है तो हमें बुखार चढ़ जाता है। होली-दिवाली व त्योहारों पर भी हम नौकर को छुट्टी देने से कतराते हैं!

जो महिलाएं नौकरीपेशा हैं उनका नौकर रखना कुछ हद तक शायद वाज़िब भी बनता है किंतु जो महिलाएँ सिर्फ घर पर रहकर अपना समय TV देखने या FB और whats app करने में बिताती हैं , उन्हें भी हर काम के लिए नौकर चाहिये????

सिर्फ इसलिए क्योंकि वे पैसा देकर काम करा सकती हैं?लेकिन बदले में वे कितनी बीमारियों को दावत देती हैं शायद यह बात वे नहीं जानतीं।

आज 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को ब्लड प्रेशर,मधुमेह,घुटनों के दर्द,कोलेस्ट्रॉल,थायरॉइड जैसी बीमारियां घेर लेती हैं जिसकी वजह सिर्फ और सिर्फ उनकी लाइफस्टाइल है।

शोध बताते हैं कि यदि 2 घण्टे घर की सफाई की जाये तो 320 कैलोरी खर्च होती हैं।

45 मिनट बगीचे में काम करने से 170 कैलोरी खर्च होती है।

एक गाड़ी की सफाई करने में 67 कैलोरी खर्च होती है

खिड़की दरवाजों को पोछने से कंधे,हाथ, पीठ व पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

आटा गूंथने से हाथों में आर्थराइटिस नहीं आता।

कपड़े निचोड़ने से कलाई व हाथ की मान्शपेशियाँ मजबूत होती हैं।

20 मिनट तक रोटियां बेलने से फ्रोजन शोल्डर होने की संभावना कम हो जाती है।

ज़मीन पर बैठकर काम करने से घुटने जल्दी खराब नहीं होते।

लेकिन हम इन सबकी ज़िम्मेदारी नौकर पर छोड़कर खुद डॉक्टरों से दोस्ती कर लेते हैं।फिर शुरू होता है खाने में परहेज़, टहलना, जिम या फिर सर्जरी!!

कितना आसान है इन सबसे पीछा छुड़ाना कि हम अपने घर के काम करें और स्वस्थ रहें।मैंने आज तक नहीं सुना कि घर का काम करने से कोई मर गया हो!

लेकिन हम मध्यम व उच्च वर्ग के लोग घर के काम को करना शर्म समझते हैं। हमारे यहां नौकर ज़रूरत के लिए कम और स्टेटस के लिए ज्यादा रखा जाता है।काम ना करके अनजाने में ही हम अपने शरीर के दुश्मन हो जाते हैं।

पश्चिमी देशों में अमीर से अमीर लोग भी अपना सारा काम खुद करते हैं और इसमें उन्हें कोई शर्म नहीं लगती। इसी कारण वे लम्बी और स्वस्थ जिन्दगी जीते हैं लेकिन हम मर जायेंगे पर काम नहीं करेंगे।

दोस्तों, किसी भी तरह की निर्भरता कष्ट का कारण होती है फिर वह चाहे शारीरिक हो ,भौतिक हो या मानसिक।अपने काम दूसरों से करवा-करवा कर हम स्वयं को मानसिक व शारीरिक रूप से पंगु बना लेते हैं और नौकर ना होने के स्थिति में असहाय महसूस करते हैं।यह एक बेहद दु:खद स्थिति है।

यदि हम काम को बोझ ना समझ कर उसका आंनद लें तो वह बोझ नहीं बल्कि एक दिलचस्प एक्टिविटी लगेगा।आप मानें या मानें, Gym से ज्यादा बोरिंग कोई जगह नहीं।उसी की जगह जब आप अपने घर को रगड़ कर साफ करते हैं तो शरीर से एंडोर्फिन हारमोन निकलता है जो आपको अपनी मेहनत का फल देखकर खुशी की अनुभूति देता है।

अच्छा खाना बनाकर दूसरों को खिलाने से सेरोटॉनिन हार्मोन निकलता है जो तनाव दूर करता है।

जब काम करने के इतने फायदे हैं तो फिर ये मौके क्यों छोड़े जायें!

हम अपना काम स्वयं करके ना सिर्फ शरीर बचाते हैं बल्कि पैसे भी बचाते हैं और निर्भरता से बचते हैं।

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