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हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुम्हे, फिर भी तुम समझ लेना

हो सकता है… मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुमसे..
लेकिन कभी
तुम्हे देर हो रही हो ऑफिस के लिए
और मैं आलू का पराठा लिए तुम्हे खिलाने को भागूँ तुम्हारे पीछे पीछे तो..
समझ जाना तुम..

तुम्हारी फाइल्स, वॉलेट, रुमाल.. गाड़ी की चाभियां
जब मिल जाये तुम्हे एक जगह व्यवस्थित तो
समझ जाना तुम…

जब तुम्हारी छोटी सी नाराजगी पर नम हो जाये मेरी आँखें
तो उन आंसुओ को देखकर
समझ जाना तुम…

तुम्हारा मनपसन्द खाना जो मुझे बनाते नही आता था..
कभी मेज़ पर सजा हुआ देखो तो
समझ जाना तुम…

तुम घर से दूर हो और मैं हर थोड़ी देर में..
किसी अजीबोगरीब बहाने से करती रहूँ तुम्हे कॉल तो
समझ जाना तुम…

कोई बुजुर्ग जब हमें दे “जोड़ी बनी रहे” का आशीष
उस वक़्त मेरी मुस्कुराहट को देखकर
समझ जाना तुम…

तुम हो उदास ..परेशानपरिस्थिति ना हो हमारे अनुकूल
तब मैं बिना कुछ कहे रख दूँ तुम्हारे हाथ पर अपना हाथ तो समझ जाना तुम…

कहीं बाहर जाना हो हमे
और मैं पहनूं तुम्हारे दिलाये हुए पसन्दीदा झुमके तो
समझ जाना तुम….

तुम्हे देखते हुए कभी लिखूं कोई ग़ज़ल ..
तो उसमें अपने ज़िक्र को पढ़कर
समझ जाना तुम…

यूं ही कभी हो जाये हमारी अनबन
और मैं गुस्से में कह दूँ कि नही करती तुमसे प्यार..
तो मेरे कांपते होंठो को देखकर
समझ जाना तुम….

हो सकता है मैं कभी प्रेम ना जता पाऊं तुम्हे…

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